हिन्दी व्याकरण (Hindi Grammar)
हिन्दी भाषा को शुद्ध रूप मे लिखने और बोलने सम्बन्धी नियमों की जानकारी कराने वाले शास्त्र को हिन्दी व्याकरण कहते है। व्याकरण के अभाव में शुद्ध हिन्दी भाषा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। व्याकरण भाषा की आत्मा है। हिन्दी व्याकरण के अन्तर्गत वर्ण, शब्द, वाक्य, विराम चिन्ह, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण, अव्यय, लिंग, काल, वचन, रस, अलंकार, छन्द, समास, सन्धि, तद्भव, तत्सम, उपसर्ग, प्रत्यय तथा विराम चिन्ह का अध्ययन किया जाता है।
वर्णः
हिन्दी भाषा के एक अक्षर को वर्ण तथा इन सभी अक्षरों(वर्णों) के समूह को वर्णमाला कहते हैं इसके टुकडे नही किये जा सकते । वर्ण हिन्दी भाषा की सबसे छोटी इकाई है ।हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण है जिनमें 34 व्यंजन तथा 10 स्वर हैं।
शब्दः
एक या अधिक वर्णों (अक्षरों) के समूह से बने स्वतन्त्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं जैसे- राम, परमात्मा, व, ने, शेर आदि।
शब्द के भेदः
व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेदः
व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द के तीन भेद हैं- रूढ़ शब्द, यौगिक शब्द तथा योगरूढ़ शब्द।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द भेदः
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के 04 भेद हैं – तत्सम शब्द, तद्भव शब्द, देशज शब्द तथा विदेशी या विदेशज शब्द।
प्रयोग के आधार पर शब्द भेदः
प्रयोग के आधार पर शब्द की 8 भेद हैं- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण, सम्बन्ध बोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक।
अर्थ की दृष्टि से शब्द भेदः
अर्थ की दृष्टि से शब्द के दो भेद है- सार्थक तथा निरर्थक शब्द।
वाक्यः
शब्दों का वह व्यवस्थित रूप जिससे कोई मनुष्य अपने विचारों का आदान -प्रदान करता है वाक्य कहलाता है। अथवा दो या दो से अधिक पदों के सार्थक समूह जिनका पूरा अर्थ निकलता है वाक्य कहलाते हैं। जैसे – “सत्य की विजय होती है” एक वाक्य है।
वाक्य के 02 भेद होते हैंः
अर्थ के आधार पर वाक्य भेद तथा रचना के आधार पर वाक्य भेद।
अर्थ के आधार पर वाक्य 08 प्रकार के होते हैंः
विधान वाचक वाक्य, निषेधवाचक वाक्य, प्रश्नवाचक वाक्य, विस्मयवाचक वाक्य, आज्ञावाचक वाक्य, इच्छावाचक वाक्य, संकेतवाचक वाक्य तथा संदेहवाचक वाक्य।
रचना के आधार पर वाक्य 03 प्रकार के होते हैंः
सरल या साधारण वाक्य, संयुक्त वाक्य तथा मिश्रित वाक्य।
संयुक्त वाक्य 04 प्रकार के होते हैंः
संयोजक,, विभाजक, विकल्प सूचक तथा परिणाम बोधक।
मिश्रित वाक्यों में एक मुख्य वाक्य और अन्य आश्रित उपवाक्य होते हैं ।
आश्रित वाक्य 03 प्रकार की होते हैंः
संज्ञा उपवाक्य, विशेषण उपवाक्य तथा क्रिया विशेषण उपवाक्य।
लिंग 02 प्रकार के होते हैंः पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग।
काल 03 प्रकार के होते हैंः भूतकाल, वर्तमान काल तथा भविष्य काल।
वचन ने 03 प्रकार के होते हैंः एक वचन, द्विवचन तथा बहुवचन।
अव्यय 04 प्रकार के होते हैंः क्रिया विशेषण, सम्बन्धबोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक।
रसों की संख्या 9 है जिसे नवरस कहा जाता है यह नवरस हैः
श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण रस, रौंद्र रस, वीर रस, भयानक रस, वीभत्स रस, अद्भुत रस, शान्त रस।
अलंकार के 03 भेद हैंः शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा उभयालंकार।
छन्द के 07 अंग हैः वर्ण, मात्रा, यति, गति, पाद या चरण, तुक तथा गण।
छन्द 03 प्रकार के होते हैंः मात्रिक छन्द, वर्णिक छन्द तथा मुक्तक छन्द।
समास 04 प्रकार के होते हैंः अव्ययीभाव समास, तत्पुरुष समास, द्वन्द्व समास तथा बहुव्रीहि समास।
सन्धि 03 प्रकार की होती हैः स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि।
तद्भवः
तद्भव शब्द 2 शब्दों तत् + भव से मिलकर बना है जिसका अर्थ है उससे उत्पन्न। वह शब्द जो संस्कृत से उत्पन्न या विकसित हुए हैं तद्भव कहलाते हैं।
तत्समः
तत्सम शब्द तत् + सम से मिलकर बना है जिसका अर्थ है उसके समान। संस्कृत के वह शब्द जिनका प्रयोग हम संस्कृत के रूप में ज्यों का त्यों करते हैं तत्सम कहलाते हैं।
उपसर्गः
उपसर्ग 03 प्रकार के होते हैंः संस्कृत उपसर्ग, हिन्दी उपसर्ग तथा उर्दू उपसर्ग।
प्रत्ययः
प्रत्यय के मुख्यतया दो भेद हैंः कृदन्त प्रत्यय तथा तद्धित प्रत्यय।