कार्बन चक्र (Carbon cycle)
वह रासायनिक चक्र जो पृथ्वी के समस्त जीवों के विए पर्यावरण से आवश्यक तत्वों तथा पृथ्वी के समस्त जीवों से पर्यावरण के प्रवाह का वर्णन करते हैं, कार्बन चक्र कहलाते हैं। यह एक प्रमुख जैव रासायनिक चक्र हैं जो समस्त जैविक आवेग के निर्माण के लिए परमावश्यक है तथा समस्त जलवायु परिवर्तनों में इसका महती योगदान रहा है। कार्बन चक्र का पर्यावरण सन्तुलन में अति महत्वपूर्ण योगदान है जो कि पृथ्वी की सर्वाधिक तेज प्रक्रियाओं में सम्मिलित है। कार्बन चक्र के अभाव में पर्यावरण सन्तुलन की कल्पना ही नही की जा सकती है।
कार्बन चक्र की खोज जोसेफ प्रीस्टली एवं एण्टोनी लावाइसियर ने किया तथा इसके सिध्दान्त का प्रतिपादन हम्फ्री डेवी ने किया था।
पृथ्वी के सभी जीव जन्तु कार्बन (C) को विभिन्न कार्बनिक स्रोतों (जैसे- ग्लूकोज, सुक्रोज, सेल्यूलोज, लैक्टोज आदि) से प्राप्त करते हैं तथा श्वसन क्रिया के माध्यम से कार्बन डाइ आक्साइड (Co2) के रूप में कार्बन को पृथ्वी के वायुमण्डल में छोड़ते हैं। इसके अलावा जीवाश्म ईंधन (जैसे- कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ आदि) के जलने से भी कार्बन डाई आक्साइड के माध्यम से काफी मात्रा में कार्बन पृथ्वी के वायुमण्डल को प्राप्त होती है। पृथ्वी के वायुमण्डल से उक्त कार्बन डाई आक्साइड (Co2) को पौधे (प्राथमिक उपभोक्ता) ग्रहण कर के कार्बन (C) प्राप्त करते हैं तथा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। यह चक्र निरन्तर चलता रहता है जो कार्बन चक्र है।
पृथ्वी के वायुमण्डल में उपलब्ध कार्बन डाई आक्साइड वर्षा को जल में घुलकर कार्बनिक अम्ल का निर्माण करती है। पृथ्वी के वायुमण्डल में उपलब्ध कार्बन डाई आक्साइड ही विकिरण ऊष्मा को अवशोषित करके ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करती है जो विश्व के तापमान से सम्बन्धित है तथा जलवायु को भी प्रभावित करता है।
कार्बन के प्रमुख भण्डार (Major reserves of carbon)
कार्बन के प्रमुख भण्डार के मुख्य स्रोत पृथ्वी का वायुमण्डल, स्थल मण्डल तथा समुद्र है।
वायुमण्डल (Atmosphere)
पृथ्वी के वायुमण्डल में कार्बन का मुख्य स्रोत कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसें हैं। पौधे वायुमण्डल की कार्बन डाई आक्साइड को ग्रहण कर प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण क्रिया के माध्यम से भोजन बनाते हुए कार्वोहाइड्रेट में बदल देते हैं तथा आक्सीजन छोड़ते हैं। पृथ्वी पर पाये जाने वाले जीव जन्तु श्वसन क्रिया के माध्यम से कार्बन डाई आक्साइड के रूप में कार्बन का उत्सर्जन वायुमण्डल में करते हैं।
प्लास्टिक उत्पादों के जलने से उत्पन्न क्लोरोफ्लोरोकार्बन से वायुमण्डल को कार्बन प्राप्त होता है।
कैल्शियम आक्साइड (चूना) का उत्पादन करने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट को गर्म करने पर कार्बन डाई आक्साइड के रूप में कार्बन वायुमण्डल को प्राप्त होता है।
कवक तथा जीवाणु मृत पौधों तथा जन्तु में कार्बनिक यौगिकों का क्षय कर के कार्बन डाई आक्साइड या मीथेन गैस उत्पन्न करते हैं जिसके रूप में वायुमण्डल को कार्बन प्राप्त होता है। पृथ्वी का अधिकांश जलाशय वायुमण्डल में उपलब्ध है।
ज्वालामुखी गैसों के विमोचन से कार्बन डाई आक्साइड के रूप में कार्बन पृथ्वी के वायुम्ण्डल के प्राप्त होता है।
स्थल मण्डल (Site board)
पेड़-पौधे वायुमण्डल की कार्बन डाई आक्साइड को ग्रहण कर के प्रकाश संश्लेषण क्रिया (Photosynthesis) द्वारा कार्बनिक यौगिक (Organic compound) बनाते है। सबसे अधिक कार्बन श्वसन क्रिया के माध्यम से स्थलमण्डल छोड़ता है। जंगलों में पेड़-पौधे बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं जिसके कारण जंगलों को कार्बन का प्रबल स्रोत माना गया है।
समुद्र (Sea)
महासारों में जीवों की मृत्यु हो जाने के उपरान्त उनके खोल कार्बोनेट अवसाद बनाते हैं जो कार्बन का बड़ा स्रोत है। महासागरों में आने वाले विभिन्न प्रचण्ड तूफानों से महासागरों में अवसाद के रूप में बहुत अधिक मात्रा में कार्बन जमा हो जाते हैं।
जलवायु पर कार्बन चक्र का प्रभाव (Effect of carbon cycle on climate)
जीवाश्म ईंधन के जलने से भारी मात्रा में उत्पन्न होने वाली कार्बन डाई आक्साइड गैस (Co2) जो कि ऊष्मा (Heat) को तेजी से पकड़ती है, प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है। पृथ्वी के वायुमण्डल में बेतहासा बढ़ती कार्बन डाई आक्साइड गैस ( ग्रीन हाउस गैस) के कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाता है। पिछले कुछ दशकों में जीवाश्म ईंधन के दहन में निरन्तर बढोत्तरी होने के कारण वायुमण्डल में कार्बन डाई आक्साइड तेजी से बढ़ी है जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग निरन्तर बढ़ रहा है। इस पर सम्पूर्ण विश्व को ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि समय रहते समुचित ध्यान न दिया गया तो बढ़ता हुआ ग्लोबल वार्मिंग सम्पूर्ण सृष्टि के लिए चुनौती बन जायेगा।