मुद्रा अवमूल्यन (Currency devaluation)
जब किसी देश के द्वारा मुद्रा की विनिमय दर अन्य देशों की मुद्राओं से कम कर दी जाये ताकि निवेश को बढावा मिल सके तो उसे मुद्रा अवमूल्यन कहते हैं । मुद्रा अवमूल्यन होने से आयात में कमी तथा निर्यात में बढोत्तरी होती है ।
दूसरे शब्दों में- “घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी होना तथा आन्तरिक मूल्य स्थिर रहने को मुद्रा अवमूल्यन कहते हैं” ।
पाल एनजिंग के अनुसार- “मुद्राओं की अधिकृत समताओं में कमी करना अवमूल्यन है” ।
स्वतन्त्र भारत में मुद्रा अवमूल्यन अब तक 03 बार हुआ है । 1949 ई0, 1966 ई0 तथा 1991 ई0 में भारतीय मुद्रा रूपये का अवमूल्यन हुआ है ।
विनिमय दरः
एक मुद्रा के सापेक्ष दूसरी मुद्रा के मूल्य को विनिमय दर कहते हैं ।
विदेशी मुद्रा बाजारः
वह बाजार जिसमें विभिन्न दाशों की मुद्राओं का विनिमय होता है उसे विदेशी मुद्रा बाजार कहते हैं ।
विनमय के प्रकारः
विनमय दर तीन प्रकार की होती है- विनमय दर कितने प्रकार की होती है- अस्थायी विनिमय दर, स्थिर विनिमय दर तथा प्रबन्धित विनिमय दर ।
अस्थायी विनिमय दर वह विनिमय दर है जिसमें मुद्रा के मूल्य को किसी मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति के आधार पर निर्धारित किया जाता है ।
स्थायी विनिमय दर वह विनिमय दर है जिसमें मुद्रा के मूल्य को सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है ।
प्रबन्धित विनिमय दर वह विनिमय दर है जिसमें सरकार द्वारा विनिमय दर में एक से तीन प्रतिशत के चढाव-उतार की अनुमति दी जाती है । इस विनिमय दर के निर्धारण में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का दखल होता है ।
मुद्रा अवमूल्यन के कारणः
- जब दो देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध घनिष्ठ होते हैं तो एक देश द्वारा मुद्रा अवमूल्यन करने पर दूसरा देश भी एसा करने के लिए बाध्य हो जाता है ।
- जब कोई देश मुद्रा संकुचन नही करना चाहता तथा स्थिर विनिमय दरों के के लाभ से भी वंचित नही होना चाहता तो वह अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर सकता है ।
- जब कोई दूसरा देश अपनी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की वस्तुओं का मूल्य गिरा देता है तो उसके हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए मुद्रा अवमूल्यन करना आवश्यक हो जाता है ।
- मुद्रा के आन्तरिक तथा बाह्य मूल्य में कोई अन्तर न होने पर कोई देश अपना निर्यात् बढाने तथा आयात कम करने के उद्देश्य से मुद्रा अवमूल्यन कर सकता है ।
- जब किसी देश की आन्तरिक तथा बाह्य मुद्रा में अन्तर होता है तो व्यापार सन्तुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पडने लगता है तो मुद्रा अवमूल्यन करके ही इस स्थिति को सुधारा जा सकता है ।
- मुद्रा संकुचन की स्थिति में जब किसी देश में मांग की कमी के कारण वस्तुओं की कीमतें गिरने लगती हैं तो मुद्रा अवमूल्यन कर के ही देश के माल की विदेशों में कीमत बढायी जा सकती है ।
- स्विस बैंक में हुई भारतीय रूपये की बढोत्तरी के कारण भारतीय रूपये पर दबाव बढ गया है ।
- तेल की बढती कीमतों ने चालू खाता घाटा बढा दिया है
मुद्रा अवमूल्यन से लाभः
- मुद्रा अवमूल्यन से निर्यात् सस्ता हो जाता है जिससे निर्यात् क्षेत्र में रोजगार का सृजन होता है ।
- निर्यात् के उच्च स्तर से चालू खाते के घाटे में सुधार होता है ।
- जो देश मुद्रा अवूंल्यन करता है उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है ।
मुद्रा अवमूल्यन से हानिः
- मुद्रा अवमूल्यन होने पर पूंजी का प्रवाह विदेशों की ओर बढ जाता है जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है ।
- मुद्रा अवमूल्यन होने पर व्यापार की शर्तें प्रतिकूल हो सकती हैं ।
- मुद्रा अवमूल्यन होने पर देश की आन्तरिक कीमतें बढ जाती हैं जिससे मंहगाई बढती है ।
- मुद्रा अवमूल्यन होने पर राष्ट्रीय आय पर अनुकूल प्रभाव भी पड सकता है, प्रतिकूल प्रभाव भी पड सकता है । यदि अवमूल्यन होने के कारण व्यापार सन्तुलन अनुकूल हो जाए तो अवमूल्यन करने वाले देश की राष्ट्रीय आय कम हो जाती है ।
- विकासशील देशों का भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल होने की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है ।