समास (Compound)
दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने से बनने वाले संक्षिप्त शब्द को समास कहते हैं।
अथवा
अनेक पदों को मिलाकर एक पद बना देना समास कहलाता है।
समास के भेदः
समास के 06 भेद हैः अव्ययीभाव समास, तत्पुरूष समास, कर्मधारय समास, बहुब्रीह समास, द्विगु समास तथा द्वन्द समास।
अव्ययीभाव समासः
इस समास में प्रथम पद अव्यय तथा प्रधान होता है, दूसरा पद संज्ञा या विशेषण होता है।
उदाहरणः यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
यथोचित = जो उचित हो।
यथासम्भव = सम्भावना के अनुसार।
यथाविधि = विधि के अनुसार।
व्यर्थ = बिना अर्थ का।
प्रतिमास = महीने-महीने।
अनुविष्णु = विष्णु के पीछे।
उप नगर = नगर के साथ।
आमरण = मरण तक।
यथावसर = अवसर के अनुसार।
प्रत्यक्ष = अक्षि (आंख) के सामने।
प्रतिशत = प्रत्येक शत।
यधोचित = जैसा उचित हो।
अजानुबाहु = जानु से बाहु तक।
धीरे-धीरे = धीरे के बाद धीरे।
कथनानुसार = कथन के अनुसार।
कुशलतापूर्वक = कुशलता के साथ।
विवेकपूर्ण = विवेक के साथ।
तत्पुरूष समासः
इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। प्रथम पद प्रायः संज्ञा होता है। प्रथम पद दूसरे पद की विशेषता बतलाता है।
जैसे- देशवासी = देश के वासी।
विद्यालय = विद्या का आलय।
पुत्रवधू = पुत्र की वधू।
स्वर्ग प्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त।
घुड़दौड़ = घोड़ों का दौड़।
तीर्थराज = तीर्थों का राजा।
गगनचुम्बी = गगन को चूमने वाला।
गृहागत = गृह को आगत।
हिमकण = हिम के कण।
अणुशक्ति = अणु की शक्ति।
व्यक्तिगत = व्यक्ति को गत।
पक्षधर = पक्ष को धारण करने वाला।
यशप्राप्त = यश को प्राप्त।
वनसम्पत्ति = वन की सम्पत्ति।
साधनास्थल = साधना का स्थल।
जीवनसाथी = जीवन का साथी।
विकासोन्मुख = विकास को उन्मुख।
ख्यातिप्राप्त = ख्याति को प्राप्त।
अधिकारप्राप्त = अधिकार को प्राप्त।
नगर संस्कृति = नगर की संस्कृति।
हस्तलिखित = हस्त द्वारा लिखित।
वाग्युध्द = वाक द्वारा युध्द।
युक्तियुक्त = युक्ति से युक्त।
ईश्वरप्राप्त = ईश्वर द्वारा प्राप्त।
हिमाच्छादित = हिम से आच्छादित।
रेलयात्रा = रेल द्वारा यात्रा।
गुरूदक्षिणा = गुरू के लिए दक्षिणा।
न्यायालय = न्याय के लिए आलय।
गोशाला = गायों के लिए शाला।
सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह।
मार्गव्यय = मार्ग के लिए व्यय।
रसोईघर = रसोई के लिए घर।
आवेदनपत्र = आवेदन के लिए पत्र।
स्नानघर = स्नान के लिए घर।
परीक्षाभवन = परीक्षा के लिए भवन।
लोकोत्तर = लोक से उत्तर।
ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त।
पद्च्युत = पद से च्यूत।
जगन्नाथ = जगत के नाथ।
दुःखसागर = दुःख का सागर।
मुनिश्रेष्ठ = मुनियों में श्रेष्ठ।
कविपुंगव = कवियों में पुंगव (श्रेष्ठ)।
वनवास = वन में वास।
ऋषिकन्या = ऋषि की कन्या।
इसी प्रकार चर्मवस्त्र, गिरिकन्दरा, व्याघ्रचर्म, रहस्योदघाटन, जलयात्रा, नौकाशार, राजपुरूष, पुरूषोत्तम, अध्ययनकुशल, वाणाहत, ज्ञानलोभ, नरपति, अन्नदाता, अश्वारूढ़, कृष्णाश्रित, दानबीर, मनमाना, गृहप्रवेश, समुद्रयात्रा, धनार्जन, आत्मोत्सर्ग, कथासाहित्य, शरशैया, कथासाहित्य, शक्तिवचन, कवि सम्मेलन तथा गोपीनाथ में तत्पुरूष समास है।
कर्मधारय समासः
यह समास तत्पुरूष समास का ही भेद है। यह समास विशेषण, विशेष्य, उपमा तथा उपमेय के योग से बनता है।
जैसे- सुप्रबन्ध = सुः + प्रबन्ध।
मधुरस = मधु + रस।
दुर्व्यवहार = दुः + व्यवहार।
नवजीवन = नव + जीवन।
नीलाकाश = नील + आकाश।
इसी प्रकार सदगुण, दुर्दिन, मुखकमल, पुत्ररत्न, चरणकमल, नरसिंह, महापुरूष, लाल पीला, मृगनयनी, महात्मा, नीलोत्पल, चरण-कमल, शिष्टाचार, विद्यायन, महात्मा, वीर पुरूष, कृष्णसर्प, श्वेतपीत तथा जीर्णतरि में कर्मधारय समास है।
बहुब्रीह समासः
इस समास में कोई भी पद प्रधान न होकर अन्य पद प्रधान होता है।
जैसे- पीताम्बर = पीत है अम्बर अर्थात् श्रीकृष्ण।
चतुरानन = चार हैं आनन अर्थात् ब्रम्हाजी।
चन्द्रपाणि = चन्द्र हैं हाथ में अर्थात विष्णुजी।
प्राप्तोदक = प्राप्त है उदक जिसे।
जितेन्द्रिय = जिसके द्वारा इन्द्रियां जीत ली गई हैं।
सतखण्ड = सात खण्ड हैं जिसके।
लम्बकर्ण = लम्बा है कर्ण जिसका।
निर्बल = निर्गत है बल।
दत्तधन = दत्त है धन जिसे।
सपरिवार = परिवार के साथ है जो।
सपत्नीक = पत्नी के साथ है जो।
मुक्कामुक्की = मुक्के से जो लड़ाई हुई हो।
दशरथनन्दन = दशरथ के नन्दन हैं जो।
वाचस्पति = वाक् के पति हैं जो।
मन्दोदरी = मन्द है उदर जिसका वह स्त्री।
इसी प्रकार परमात्मा, चक्रपाणिदर्शनार्थ, दशानन, लम्बोदर, पंकज, वीणापाणि, नीलकंठ, महाशय, चन्द्रमौलि तथा प्राप्तोदक में बहुब्रीह समास है।
द्विगु समासः
वह समास जिसका प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण होता है, द्विगु समास कहलाता है।
जैसे- चौराहा = चौ + राहा (चार रास्तों का मिलन)।
चतुर्दिक = चतुर + दिक (चार दिशाओं का समाहार)।
इसी प्रकार त्रिभुवन, त्रिभुज, तिरंगा, त्रिलोक, पंचवटी, सप्तऋषि, नवरत्न तथा त्रिलोकी में द्विगु समास है।
द्वन्द समासः
वह समास जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं उसे द्वन्द समास कहते हैं।
जैसे- माता-पिता = माता और पिता।
अन्न-जल = अन्न और जल।
जीव-जन्तु = जीव और जन्तु।
हास-परिहास = हास और परिहास।
नृत्यगान = नृत्य और गान।
इसी प्रकार ज्ञान-विज्ञान, आजकल, अश्त्र-शस्त्र, आदान-प्रदान, सुख-दुख, राधा-कृष्ण, रात-दिन, राम-लखन, जय-पराजय, रंग-बिरंगी, भय-सन्देह, ऋषि-मुनि में द्वन्द समास है।