सन्धि (Treaty)
दो या दो से अधिक वर्णों के सम्मिलन से उत्पन्न होने वाले विकार या परिवर्तन को सन्धि कहते हैं। संयुक्त शब्दों को अलग-अलग तोड़ने को सन्धि विच्छेद कहा जाता है। सन्धि का शाब्दिक अर्थ है- मेल। सन्धि संस्कृत भाषा का शब्द है।
सन्धि के प्रकारः
वर्णों के आधार पर सन्धि तीन प्रकार की होती हैः स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि।
स्वर सन्धिः
दो स्वरों के मिलन से उत्पन्न परिवर्तन या क्रिया को स्वर सन्धि कहा जाता है। जैसे- विद्या + आलय = विद्यालय, रमा + ईश = रमेश। यहां पर विद्या + आलय में आ +आ स्वर मिलकर आ का रूप तथा रमा + ईश में आ + ई मिलकर ए का रूप धारण कर लेते हैं।
स्वर सन्धि के 05 भेद हैं- दीर्घ सन्धि, गुण सन्धि, वृध्दि सन्धि, यण सन्धि तथा अयादि सन्धि।
दीर्घ सन्धिः
इस सन्धि में ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद क्रमशः अ, इ, उ या आ, ई, ऊ आए तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं। अर्थात् अ + अ = आ, अ + अ = आ, आ + अ = आ, आ + आ = आ, इ + इ = ई, इ + ई = ई, ई + इ = ई, ई + इ = ई, ई + ई = ई, उ + उ = ऊ, उ + ऊ = ऊ, ऊ + उ = ऊ, ऊ + ऊ = ऊ हो जाता है।
जैसे- राम + अवतार = रामावतार।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
शुभागमन | शुभ + आगमन | नदीश | नदी + ईश |
विध्युदय | विधि + उदय | भूर्ध्व | भू + ऊर्ध्व |
गिरीन्द्र | गिरि + इन्द्र | मतानुसार | मत + अनुसार |
धर्मार्थ | धर्म + अर्थ | वीरांगना | वीर + अंगना |
सुखान्त | सुख + अन्त | परमार्थ | परम + अर्थ |
पराधीन | पर + अधीन | स्वार्थी | स्व + अर्थी |
वेदान्त | वेद + अन्त | दैत्यारि | दैत्य + अरि |
भोजनालय | भोजन + आलय | सत्याग्रह | सत्य + आग्रह |
देवालय | देव + आलय | पुस्तकालय | पुस्तक + आलय |
विद्यार्थी | विद्या + अर्थी | परीक्षार्थी | परीक्षा + अर्थी |
विद्यालय | विद्या + आलय | महात्मा | महा + आत्मा |
महाशय | महा + आशय | वार्तालाप | वार्ता + आलाप |
कवीन्द्र | कवि + इन्द्र | अभीष्ट | अभि + इष्ट |
कवीश्वर | कवि + ईश्वर | गिरीश | गिरि + ईश |
परीक्षा | परि + ईक्षा | कपीश | कपि + ईश |
देवीच्छा | देवी + इच्छा | शचीन्द्र | शची + इन्द्र |
नदीश | नदी + ईश | नारीश्वर | नारी + ईश्वर |
विष्णूदय | विष्णु + उदय | विधूदय | विधि + उदय |
लघूर्मि | लघु + ऊर्मि | साधूर्जा | साधु + ऊर्जा |
भूध्दार | भू + उध्दार | वधूत्सव | वधु + उत्सव |
वधूर्मि | वधू + ऊर्मि | भूष्मा | भू + ऊष्मा |
गुण सन्धिः
इस सन्धि में अ + इ = ए, अ + ई = ए, आ + इ = ए, अ + उ = ओ, आ + उ =ओ, अ + ऊ = ओ, आ + ऊ = ओ, अ + ऋ = अर् हो जाता है।
जैसे- देव + इन्द्र = देवेन्द्र।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
नरेन्द्र | नर + इन्द्र | गणेश | गण + ईश |
महेन्द्र | महा + इन्द्र | महेश | महा + ईश |
चन्द्रोदय | चन्द्र + उदय | महोत्साह | महा + उत्साह |
जलोर्मि | जल + ऊर्मि | महोर्मि | महा + ऊर्मि |
महर्षि | महा + ऋषि | राजेन्द्र | राजा + इन्द्र |
भारतेन्दु | भारत + इन्दु | महोत्सव | महा + उत्सव |
सर्योदय | सूर्य + उदय | देवर्षि | देव + ऋषि |
वृध्दि सन्धिः
जब अ या आ के बाद ए या ऐ अथवा ओ या औ आताता है तो ये क्रमशः ऐ तथा औ हो जाते हैं।
जैसे- लोक + एषणा = लोकैषणा।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
देवैश्वर्य | देव + ऐश्वर्य | मतैक्य | मत + ऐक्य |
एकैक | एक +एक | सदैव | सदा + एव |
तथैव | तथा + एव | महैश्वर्य | महा + ऐश्वर्य |
जलौध | जल + ओध | महौज | महा + ओज |
महौषध | महा + औषध | कृष्णौकत्व | कृष्ण + औकत्व |
यण सन्धिः
यदि इ, ई, उ, ऊ औप ऋ के बाद भिन्न श्वर आता है तो इ तथा ई का य, उ तथा ऊ का व और ऋ का र् हो जाता है। अर्थात् इ + अ = य, इ + आ = या, इ + उ = यु, इ + ऊ = यू, इ + ए = ये, ई + आ = या, ई + ऐ = यै, उ + अ =व, उ + आ = वा, उ + इ = वि, उ + ए = वे, ऊ + आ = वा, ऋ + अ = र, , ऋ + आ = रा तथा ऋ + इ = रि हो जाता है।
जैसे- अति + अधिक = अत्यधिक।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
यद्यपि | यदि + अपि | अन्वेषण | अनु + ऐषण |
अत्यावश्यक | अति + आवश्यक | अत्याचार | अति + आचार |
अत्युत्तम | अति + उत्तम | न्यून | नि + ऊन |
प्रत्येक | प्रति + एक | सख्यागमन | सखि + आगमन |
स्वच्छ | सु + अच्छ | स्वागत | सु + आगत |
पित्रिच्छा | पितृ + इच्छा | पित्राज्ञा | पितृ + आज्ञा |
अन्वित | अनु + इत | वध्वागमन | वधु + आगमन |
पित्रनुमति | पितृ + अनुमति | प्रत्युपकार | प्रति + उपकार |
अयादि सन्धिः
यदि ए, ऐ, ओ, औ के आगे कोइ स्वर आए तो ए का अय्, ऐ का आय्, ओ का अव् तथा औ का आव् हो जाता है। जैसे- चे + अनम = चयन।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
नयन | ने + अन | गायक | गै + अक |
नायक | नै + अक | पवित्र | पो + इत्र |
पवन | पो + अन | नाविक | नौ + इक |
नायिका | नै + इका | पावन | पौ + अन |
व्यंजन सन्धिः
व्यंजन के बाद किसी स्वर या व्यंजन के आने से उस व्यंजन में होने वाले परिवर्तन को व्यंजन सन्धि कहते हैं।
व्यंजन सन्धि के नियमः
- यदि किसी वर्ण के बाद कोई स्वर या ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, ल, व, ह आता है तो वर्ण अपने वर्ण का तृतीय वर्ण हो जाता है।
- यदि त् द् के बाद चवर्ग का कोई अक्षर श् हो तो त् का च् तथा द् का ज् हो जाता है।
- यदि च् के बाद श् हो तथा उसके बाद कोई स्वर, ह्, य्, व्, र्, ल् या पंचमाक्षर हों ते श् का छ् हो जाता है।
- यदि तवर्ग का कोई वर्ण टवर्ग या श् के योग में आता है तो तवर्ग वर्ण उसी क्रम का टवर्ग हो जाता है।
- एक पाद में स्वर से परे छ् आ जाये तो छ् से पूर्व च् आ जाता है।
- यदि तवर्ग के किसी वर्ण से परे ल् हो तो उस वर्ण का ल् हो जाता है।
- यदि वर्गीय वर्ण के बाद किसी वर्ग का पंचम वर्ण आ जाये तो प्रथम वर्ण अपने वर्ण का पंचम वर्ण हो जाता है।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
ओंकार | ओम + कार | इष्ट | इष् + त |
तज्जलम | तद् + जलम् | सच्चरित | सत् + चरित |
सदानन्द | सत् + आनन्द | उदघाटन | उत् + घाटन |
उदभव | उत् + भव | उच्चारण | उत् + चारण |
सज्जन | सत् + जन | सच्छास्त्त | सत् + शास्त्र |
षडानन | षट् + आनन | वागीश | वाक् + ईश |
उध्दत | उत् + हत | पध्दति | पद् + हति |
दिग्गज | दिक् + गज | सदगति | सत् + गति |
अब्ज | अप् + ज | सच्चित | सत् + चित |
वृहट्टीका | वृहत् + टीका | संस्कार | सम् + कार |
रामायण | राम + अयन | परिणाम | परि + नाम |
वर्ण | वर् + न | प्रमाण | प्रमा + अन |
रूक्मिणी | रूक्म + इनी | कृष्ण | कृष् + न |
निषेध | नि + सेध | अभिषेक | अभि + सेक |
अनुष्ठान | अनु + स्थान | आच्छादन | आ + छादन |
परिच्छेद | परि + छेद | विच्छेद | वि + छेद |
परिच्छेद | परि + छेद | साम्राज्य | साम् + राज्य |
संस्करण | सम् + करण | सम्राट | सम् + राट् |
संवाद | सम् + वाद | संरक्षक | सम् + रक्षक |
संयोग | सम् + योग | संलग्न | सम् + लग्न |
किंचित | किम् + चित् | अलंकार | अलम् + कार |
जगन्नाथ | जगत + नाथ | सन्मार्ग | सत् + मार्ग |
चिन्मय | चित् + मय | उन्नति | उत् + नति |
तल्लीन | तत् + लीन | उल्लेख | उत् + लेख |
उल्लास | उत् + लास | आकृष्ट | आकृष + त |
विसर्ग सन्धिः
विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यंजन के मेल से होने वाले परिवर्तन को विसर्ग सन्धि कहते हैं।
शब्द | सन्धि विच्छेद | शब्द | सन्धि विच्छेद |
नमस्ते | नमः + ते | विष्णुस्त्राता | विष्णु + त्राता |
दुस्तर | दुः + तर | निस्संदेह | निः + सन्देह |
निःसंदेह | निः + सन्देह | मनस्ताप | मनः + ताप |
निश्चल | निः + चल | निश्छल | निः + छल |
दुश्चरित्र | दुः + चरित | निश्चिन्त | निः + चिन्त |
दुश्शासन | दुः + शासन | दुःशासन | दुः + शासन |
निष्पाप | निः + पाप | निष्फल | निः + फल |
निष्कलंक | निः + कलंक | नमस्कार | नमः + कार |
रजोगुण | रजः + गुण | मनोरथ | मनः + रथ |
वयोवृध्द | वयः + वृध्द | सरोवर | सरः + वर |
अधोगमन | अधः + गमन | तपोधन | तपः + धन |
अतएव | अतः + एव | निरर्थक | निः + अर्थक |
तपोवन | तपः + वन | मनोहर | मनः + हर |
पुनर्व्यवस्था | पुनः + व्यवस्था | बहिर्मुखी | बहिः + मुखी |
निराशा | निः + आशा | दुरूपयोग | दुः + उपयोग |
निर्धन | निः + धन | निर्विघ्न | निः + विघ्न |
निरीह | निः + ईह | निर्गुण | निः + गुण |
दुराग्रह | दुः + आग्रह | निराश्रय | निः + आश्रय |
नीरस | नि + रस | नीरस | निर् + रस |
नीरोग | नि + रोग | नीरोग | निर् + रोग |